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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता
कोई नींद मिसाल नहीं बनती कोई लम्हा ख़्वाब नहीं होता
सलीम कौसर
ग़ज़ल
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
रखता है ज़िद से खींच के बाहर लगन के पाँव
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उम्र बढ़ती जा रही है ज़ीस्त घटती जाए है
जिस्म की ख़ुश्बू की ख़्वाहिश दूर हटती जाए है
कृष्ण मोहन
ग़ज़ल
ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए
जब तिलक साथ तिरे उम्र-ए-गुरेज़ाँ चलिए